बद्रीनाथ: जानिए भगवान विष्णु के बालरूप एवं माता लक्ष्मी की बद्री वृक्ष धारण करने की अनोखी कहानी

Sat 26-Oct-2024,01:02 PM IST +05:30
बद्रीनाथ: जानिए भगवान विष्णु के बालरूप एवं माता लक्ष्मी की बद्री वृक्ष धारण करने की अनोखी कहानी Badrinath
  • यह भारत के चार धामों द्वाराका, जगन्नाथ पूरी और रामेश्वरम में से एक है और भगवान विष्णु को समर्पित है। 

  • जाड़ों में मौसमी दशाओं के कारण भगवान बद्रीनाथ मंदिर के कपाट साल में 6 महीने के लिए बंद रहते हैं।

Uttarakhand / Haridwar :

उत्तराखंड/बद्रीनाथ धाम उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में स्थित एक प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थस्थान है। यह भारत के चार धामों द्वाराका, जगन्नाथ पूरी और रामेश्वरम में से एक है और भगवान विष्णु को समर्पित है। बद्रीनाथ मंदिर हिमालय पर्वत श्रेणी में स्थित है जो समुद्र तल से लगभग 3,133 मीटर (10,279 फीट) की ऊँचाई पर है। अलकनंदा नदी के किनारे पर स्थित यह धाम चारों ओर से पर्वतों से घिरा हुआ है।

बद्रीनाथ धाम से संबंधित मान्यता के अनुसार इस धाम की स्थापना सतयुग में हुई थी। यही कारण है कि इस धाम का माहात्म्य सभी प्रमुख शास्त्रों में पाया गया है। माना जाता है कि भगवान विष्णु ने यहाँ तपस्या की थी इसलिए यह पवित्र स्थल भगवान विष्णु के चतुर्थ अवतार नर एवं नारायण की तपोभूमि है। यह मंदिर बद्री नामक वृक्षों के वन में स्थित होने के कारण 'बद्रीनाथ' कहलाता है। बद्रीनाथ मंदिर एक शिखर शैली में बना हुआ है, जिसका शिखर लगभग 15 मीटर ऊँचा है। मंदिर के गर्भगृह में विष्णु भगवान की शालिग्राम से बनी प्रतिमा स्थापित है जिसके बारे में मान्यता है कि इसे आदि शंकराचार्य ने ८वीं शताब्दी में समीपस्थ नारद कुण्ड से निकालकर स्थापित किया था तथा इस मंदिर की पुनःस्थापना की थी। यहाँ भगवान विष्णु को बद्रीनारायण के रूप में पूजा जाता है। गर्भगृह के सामने दर्शन मंडप और सभा मंडप हैं।

बद्रीनारायण मंदिर अद्वितीय धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है। यह मंदिर हिंदुओं और जैन धर्म के लोगों के लिए आस्था का केंद्र है। भगवान बद्रीनाथ के दर्शन करने के लिए हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु यात्रा में शामिल होते है। जाड़ों में मौसमी दशाओं के कारण भगवान बद्रीनाथ मंदिर के कपाट साल में 6 महीने के लिए बंद रहते हैं।

बद्रीनाथ और पौराणिक कथाएं:

बद्रीनाथ का इतिहास और पौराणिक कथाएँ हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। यहाँ कुछ प्रमुख पौराणिक कथाएँ और इतिहास की घटनाएँ दी गई हैं:

1. विष्णु का तपस्या स्थल: जब भगवान श्रीविष्णु अपनी तपस्या के लिए उचित स्थान देखते-देखते नीलकंठ पर्वत और अलकनंदा नदी के तट पर पहुंचे, तो यह स्थान उनको अपने ध्यान योग के लिए बहुत पसंद आया। पर यह जगह शिवभूमि होने के कारण विष्णु भगवान ने यहां बाल रूप धारण किया और रोने लगे। उनके रुदन को सुनकर माता पार्वती और शिवजी उस बालक के सामने प्रस्तुत हुए और बालक से पूछा, कि उसे क्या चाहिए। बालक ने अपने ध्यान योग करने के लिए शिव से यह स्थान मांग लिया। तब भगवान विष्णु ने शिव-पार्वती से रूप बदलकर जो स्थान प्राप्त किया था वही पवित्र स्थल आज बद्रीविशाल के नाम से प्रसिद्द है।

भगवान विष्णु ने यहां कठोर तपस्या की थी। इस दौरान, लक्ष्मी जी ने उन्हें बर्फ से बचाने के लिए बद्री वृक्ष (जूनिपर या बेर का पेड़) का रूप धारण किया और उनके ऊपर छाया प्रदान की। इसलिए, भगवान विष्णु को 'बद्रीनाथ' और देवी लक्ष्मी को 'बद्रीशनी' कहा गया।

2. नारद मुनि की कथा: एक अन्य कथा के अनुसार, नारद मुनि ने यहाँ भगवान विष्णु को ध्यान में लीन देखा। नारद जी ने भगवान विष्णु से कहा कि वे गृहस्थ धर्म का पालन करें और बद्रीनाथ के रूप में भक्तों की भक्ति स्वीकार करें। इस कारण, भगवान विष्णु ने यहाँ निवास करने का निश्चय किया।

3. महाभारत की कथा: महाभारत के अनुसार, पांडवों ने अपने अंतिम समय में स्वर्गारोहण के लिए इसी मार्ग का उपयोग किया था। उन्होंने बद्रीनाथ में पूजा अर्चना की और यहाँ से आगे बढ़े।

4. नर और नारायण की कथा: बद्रीनाथ को नर और नारायण ऋषियों का तपस्या स्थल भी माना जाता है। कथा के अनुसार, भगवान विष्णु नर और नारायण ऋषियों के रूप में यहाँ अवतरित हुए और कठिन तपस्या की।

बद्रीनाथ का ऐतिहासिक महत्व अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह स्थान प्राचीन काल से ही तपस्वियों, ऋषियों और मुनियों का ध्यान स्थल रहा है। विभिन्न राजवंशों और राजाओं ने बद्रीनाथ मंदिर का संरक्षण और विकास किया। 17वीं शताब्दी में, गढ़वाल के राजा ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण कराया। बद्रीनाथ अलकनंदा नदी के किनारे स्थित है, जो गंगा की प्रमुख धाराओं में से एक है। इस नदी का धार्मिक और पवित्र महत्व है।

बद्रीनाथ धाम की यात्रा धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। यह यात्रा चार धाम यात्रा का हिस्सा है, जिसमें बद्रीनाथ के साथ केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री भी शामिल हैं। इन पौराणिक कथाओं और ऐतिहासिक घटनाओं के कारण यहाँ की यात्रा धार्मिक आस्था और श्रद्धा का प्रतीक है।

बद्रीनाथ में प्रमुख त्यौहार और उत्सव:

बद्रीनाथ धाम में विभिन्न त्यौहार और उत्सव मनाए जाते हैं जैसे-

•  बद्रीनाथ मंदिर का कपाट खुलना: यह मंदिर अप्रैल या मई में खुलता है और अक्टूबर या नवंबर में बंद होता है।

•  माता मूर की पूजा: यह पूजा विशेष रूप से श्री बद्रीनाथ की माता मूर देवी को समर्पित है।

•  विवाह पंचमी: यह त्यौहार भगवान बद्रीनारायण और माता लक्ष्मी के विवाह का उत्सव है।

•  माता मंगला देवी का उत्सव: यह त्यौहार भी बद्रीनाथ धाम में महत्वपूर्ण है।

बद्रीनाथ में घूमने योग्य प्रमुख स्थान:

बद्रीनाथ धाम में और इसके आसपास कई महत्वपूर्ण दर्शनीय स्थान हैं। इन स्थानों की धार्मिक, सांस्कृतिक और प्राकृतिक महत्व के कारण, यहाँ की यात्रा अविस्मरणीय होती है। कुछ प्रमुख स्थान हैं जैसे-

1. बद्रीनाथ मंदिर: भगवान विष्णु को समर्पित यह मुख्य मंदिर बद्रीनाथ धाम का प्रमुख आकर्षण है।

2. ताप्त कुंड: यह एक गर्म पानी का कुंड है जो बद्रीनाथ मंदिर के पास स्थित है। यहाँ श्रद्धालु स्नान करके मंदिर में प्रवेश करते हैं।

3. नारद कुंड: यह अलकनंदा नदी का एक जलाशय है और यहाँ भगवान विष्णु की मूर्ति प्राप्त की गई थी।

4. माता मूर्ति मंदिर: यह मंदिर भगवान बद्रीनाथ की माता को समर्पित है और बद्रीनाथ से 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

5. सतोपंथ झील: यह त्रिकोणीय झील बद्रीनाथ से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और इसका धार्मिक और प्राकृतिक महत्व है।

6. भविष्य बद्री: यह स्थान बद्रीनाथ से लगभग 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और इसे पंच बद्री तीर्थ में शामिल किया जाता है।

7. नीलकंठ पर्वत: यह पर्वत बद्रीनाथ मंदिर के पीछे स्थित है और इसका दृश्य अत्यंत सुंदर है।

8. वासु धारा: यह झरना बद्रीनाथ से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह स्थान प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है।

9. चमासा और व्यास गुफा: ये गुफाएँ बद्रीनाथ से थोड़ी दूरी पर स्थित हैं और यहाँ महर्षि वेदव्यास ने महाभारत की रचना की थी।

बद्रीनाथ यात्रा का सबसे अच्छा समय:

बद्रीनाथ धाम हिमालय की ऊँचाई पर स्थित है, इसलिए यहाँ की यात्रा के लिए मौसम और समय का ध्यान रखना महत्वपूर्ण है:

•   मई से जून: यह समय यात्रा के लिए सबसे अच्छा माना जाता है। मौसम सुहावना और सुखद होता है, जिससे यात्रा आरामदायक होती है।

•  सितंबर से अक्टूबर: मानसून के बाद का समय भी यात्रा के लिए उपयुक्त होता है। इस समय पर्यावरण हरा-भरा और स्वच्छ होता है।

मौसम के कारण, बद्रीनाथ मंदिर का कपाट अक्टूबर-नवंबर में बंद हो जाता है और अप्रैल-मई में पुनः खुलता है। इसलिए, इस अवधि के बाहर यात्रा की योजना नहीं बनाई जा सकती।

कैसे पहुँचें बद्रीनाथ धाम:

हवाई मार्ग: निकटतम हवाई अड्डा जॉली ग्रांट हवाई अड्डा (देहरादून) है, जो बद्रीनाथ से लगभग 317 किलोमीटर दूर है।

रेल मार्ग: निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश रेलवे स्टेशन है, जो बद्रीनाथ से लगभग 295 किलोमीटर दूर है।

सड़क मार्ग: बद्रीनाथ सड़क मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। प्रमुख शहरों से बस और टैक्सी सेवाएं उपलब्ध हैं।

बद्रीनाथ धाम यात्रा की तैयारी:

1. स्वास्थ्य जांच: उच्च ऊँचाई पर स्थित होने के कारण, यात्रा से पहले स्वास्थ्य जांच करवा लें।

2. पंजीकरण: यात्रा के लिए आवश्यक पंजीकरण करें।

3. मौसम के अनुसार वस्त्र: गर्म कपड़े और बारिश के लिए उचित व्यवस्था करें।

4. प्राथमिक चिकित्सा किट: आवश्यक दवाइयाँ और प्राथमिक चिकित्सा किट साथ में रखें।

इस तरह बद्रीनाथ धाम की यात्रा धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण होती है, और यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता भी मंत्रमुग्ध कर देती है।